सपना पूरा नहीं होता, लक्ष्य होता है !

आप कोई भी हों, कहीं भी हों, कुछ भी कर रहे हों, आपका एक सपना अवश्य होगा । ज्यादा सम्भावना है कि वह सपना सपना ही रह जाए, कभी साकार ना हो पाए । लेकिन अगर आप उस सपने को लेकर गंभीर है, पहले आपको उसे लक्ष्य बनाना होगा । सपना, यानी कल्पना । सिर्फ एक इच्छा । दूसरी तरफ लक्ष्य, यानी ऐसा सपना जिसे साकार करने की एक चरणबद्ध योजना भी होती है । लक्ष्य के सभी पहलुओं पर आप विचार कर चुके होते है । सपना अनायास ही जन्मता है, पर लक्ष्य आप सोच विचारकर बनाते है । पर लक्ष्य बनाते  बातों का ध्यान रखना पड़ता है, जिससे उसके हांसिल होने  बढ़ जाते है । इसके अलावा लक्ष्य प्राप्ति की राह में कई चीज़े मायने रखती है । जैसे -








आपका प्रश्न क्या है ?

लक्ष्य तय करने से पहले हम आमतौर पर खुद से पूछते है कि हमारी इच्छा क्या है ? हम वास्तव में क्या पाना चाहते है । लेकिन प्रेरक वक्ता मार्क मेन्सन एक अन्य प्रश्न की सलाह देते है । वह है - 'मैं किस तरह का और कितना दर्द चाहता हु?' आपको क्या और कितना हांसिल होगा, यह आपके द्वारा सहे गए दर्द और किये गए त्याग की प्रकर्ति पर निर्भर करता है । मसलन, यदि आपका लक्ष्य एक लेख लिखना है, तो आपक थोड़े से चिंतन मनन व रिसर्च की पीढ़ा सहनी होगी और 1 - 2  घंटे की नींद का त्याग करना पड़ेगा । लेकिन अगर पूरी किताब लिखने का लक्ष्य बनाते है, तो इन सबकी मात्रा कई गुना बढ़ जायगी । इसलिए, अहम् सवाल है कि आप कितना सहना चाहते है ? खुद को इसका जवाब इमानदारी से दे । 

आपकी सीमाँए क्या है ?

लक्ष्य की राह में एक अनिवार्य तत्व है, निरंतरता । यह नहीं कि मूड हुआ तो काम किया अन्यथा महीनों उसकी तरह देखा भी नहीं । इस निरंतरता को हांसिल करने के लिए लोग न्यूनतम सीमा तय कर लेते है, यानी कम से कम हर दिन इतना तो करना ही है । इसके सिवा एक उपरी सीमा भी तय करनी चाहिए कि मैं किसी भी दिन इससे ज्यादा काम नहीं करूँगा । यह क्यों जरुरी है ? क्योंकि संभव है कि आप उत्साह में आकर किसी दिन ज्यादा काम कर ले और उसके बाद संतुष्ट होकर कई दिनों तक काम ही ना करें । इससे लक्ष्य बिगड़ने का खतरा रहता है । दूसरी बात, बहुत अधिक काम के बाद आपको सामान्य काम भी कम लगेगा और हो सकता है कि इससे आप निराश हो जाएँ । इसलिए उपरी सीमा भी तय करे । 

आपके साधन क्या है ?

लोग लक्ष्य तय करने के बाद बढे जोर शोर से साधन जुटाने लगते है । इससे मन में संतोष रहता है कि हमने काम शुरू कर दिया है । साधन जुटाने तो चाहिए पर सिलसिलेवार ढंग से । उदहारण के लिए, आपने लेखन से जुड़ा लक्ष्य बनाया है, तो तत्काल कंप्यूटर सीखना या टाइपिंग सीखना आवश्यक नहीं है । पहले एक पेन व डायरी जुटाइए और दस बीस प्रष्ट लिख तो लीजिये । जब लेखन में निरंतरता और नियमितता आ जाए, तब आगे के साधनों जैसे - कंप्यूटर टेबल, टाइपिंग टूल्स, सम्बंधित अप्प्स आदि के बारे में सोचिये ।
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