The OSI Reference Model के बारे में | ccna

याद रखें, The OSI रेफरेंस मॉडल एक काल्पनिक (logical) मॉडल है, ये किसी प्रकार का हार्डवेयर या फिर फिजिकल मॉडल नहीं है | वास्तव में एक दिशा-निर्देशों का समूह (set of guidelines) है जिसके तहत डेवेलपर्स, अप्लीकेशंस बना सकते है और किस नेटवर्क के अकार्डिंग रन करवा सकते है | ये एक ढांचा देता है जिसकी मदद से आप नेटवर्किंग स्टैंडर्ड्स, devices और नेटवर्किंग स्कीम लागू कर सकते है |

OSI मॉडल में 7 लेयर्स है जो 2 ग्रुप्स में बंटी हुई है | ऊपर की 3 लेयर्स ये बताती है कि अप्लीकेशंस, दूसरे devices से कैसे कम्यूनिकेट करेंगी और साथ में यूजर्स को भी | और नीचे की 4 लेयर्स ये बताती है कि सिस्टम्स के बीच में डाटा का ट्रांसमिशन कैसे होगा |

The Upper Layers

- Application - Provides a user interface.
- Presentation -(1) Present data. (2) Handling processing such as encryption.
- Session - Keeps different application date separate.

The Lower Layers

- Transport - (1) Provides reliable or unreliable delivery. (2) perform error 
  correction before retransmit.
- Network - Provides logical addressing which routers use for path 
  determination.
- Data Link - (1) Combines Packets into bytes and bytes into frames. (2) 
  Provides access to media using MAC Address. (3) Performs error detection 
  not correction.
- Physical - (1) Moves bits between devices. (2) Specifies voltage, wire speed 
  and pin-outs of cables.

OSI layer Functions

- Application - File, Print, Message, Database and Application Services
- Presentation - Data encryption, Compression and translation Services.
- Session - Dialog Control
- Transport - End to End Connection
- Network - Routing
- Data Link - Framing
- Physical - Physical Topology

The Application Layer


OSI मॉडल की application लेयर एक बिंदु निर्धारित कर देती है जहाँ से वास्तव में यूजर्स, कंप्यूटर से कम्यूनिकेट कर सकते है और जब यह पता चलता है कि नेटवर्क का उपयोग होने वाला है तो ये हरकत में आ जाती है |

IE (इन्टरनेट एक्स्प्लोरर) की परिस्थिति को लेकर देखते है :-
आप वास्तव में कंप्यूटर से नेटवर्किंग के हर भाग को हटा सकते है जैसे - TCP/IP, नेटवर्क इंटरफ़ेस कार्ड (NIC) आदि और उसके बाद भी IE से लोकल html डॉक्यूमेंट देख सकते है | लेकिन चीज़े उस समय भयंकर होगी जब आप किसी ऐसे html डॉक्यूमेंट को खोलेंगे जो किसी रिमोट लोकेशन पर हो और उसके लिए एप्लीकेशन लेयर के एक्सेस की जरुरत पड़ेगी | मूलरूप से एप्लीकेशन लेयर एक रास्ते की तरह काम करती है, एक्चुअल एप्लीकेशन, प्रोग्राम और उसके नीचे की लेयर के बीच में | और ये लेयर रास्ते उपलब्ध करवाती है जिससे इनफार्मेशन को प्रोटोकॉल के जरिये नीचे भेजा जा सके |

The Presentation Layer

जैसा इसका काम है वेसा ही इसका नाम है | ये एप्लीकेशन लेयर के लिए डाटा प्रस्तुत करती है और डाटा ट्रांसलेशन और कोड फोर्माटिंग के लिए भी उतरदायी होती है | आप इसको OSI मॉडल को ट्रांसलेटर के रूप में ले सकते है जो कि कोडिंग और ट्रांसलेशन सर्विसेज प्रोवाइड करवाती है | ये लेयर सुनिश्चित करती है कि जो डाटा एक सिस्टम की एप्लीकेशन लेयर से भेजा गया है वो दूसरे सिस्टम की एप्लीकेशन लेयर को मिला की नहीं |

The Session Layer

इस लेयर का कम है 2 एप्लीकेशन लेयर के बीच सम्बन्ध स्थापित करना, उनको मैनेज करना और जब सेशन पूरा हो जाये तो सेशन को ब्रेक करना साथ ही साथ यूजर के डाटा को अलग करना | सेशन में हो रहे डायलॉग को कण्ट्रोल में रखना भी इसी लेयर का काम है |

कंप्यूटरस की बहुत सारी एप्लीकेशन जिनको सेशन, क्लाइंट से सर्वर के बीच में बनता है, वो इसी लेयर के द्वारा अलग-अलग मोड में, सिम्पलेक्स, हाफ-डुप्लेक्स और फुल-डुप्लेक्स में को-ओर्दिनेट और आर्गनाइज्ड किये जाते है |

The Transport Layer

इस लेयर का काम है एक किसी भी डाटा को अलग अलग हिस्सों में बांटना और फिर वापस उसी प्रकार जोड़ना जैसे वह थे | इस लेयर में जो सर्विसेस उपलब्ध है उनके द्वारा ये ऊपर की लेयर से आने वाले विभिन्न प्रकार के डाटा को प्राप्त करती है और उसको जोड़कर वापस अपनी स्थिति में बदल देती है |

इस लेयर में जो प्रोटोकॉल है उनसे end-to-end स्टेशन डाटा transport सर्विसेज प्राप्त होती है और इनके द्वारा सेंडिंग होस्ट से डेस्टिनेशन होस्ट के बीच काल्पनिक कनेक्शन बनाये जाते है | जाना पहचाना जोड़ा tcp और udp प्रोटोकॉल इसी लेयर में आते है |

टांसपोर्ट लेयर, connectionless or connection oriented इन दोनों मेसे किसी एक में हो सकती है |

Connection-oriented Connection

एक अच्छा ट्रांसपोर्ट हो इसके लिए, जो डिवाइस डाटा भेजना चाह रही है सबसे पहले वो रिमोट डिवाइस के साथ एक कनेक्शन ओरिएंटेड सेशन बनाती है जो call setup or three way handshake के नाम से जाना जाता है, उसके बाद डाटा ट्रान्सफर होता है | प्रोसेस पूरा होने के बाद वर्चुअल सर्किट कनेक्शन को बंद कर दिया जाता है |

Step for Connection Oriented Session (कनेक्शन कैसे बनता है ?)

  1. सबसे पहले कनेक्शन अग्रीमेंट होता है जिसमे सेगमेंट के द्वारा सिंक्रोनाइजेशन की रिक्वेस्ट की जाती है |
  2. इसके बाद सेगमेंट की रिक्वेस्ट को स्वीकार (acknowledge) (ACK) किया जाता है रूल्स के अकार्डिंग एक कनेक्शन बनाया जाता है | रिसीवर से आने वाले सेगमेंट को एक बार सिंक्रोनाइज किया जाता है ताकि दोनों तरफ कनेक्शन बना रहे |
  3. फाइनल सेगमेंट जब सेंडर के द्वारा भेजा जाता है, वो एक तरह का acknowledgement होता है जो डेस्टिनेशन होस्ट को बताता है कि कनेक्शन अग्रीमेंट एक्सेप्ट कर लिया गया है और अब वास्तविक कनेक्शन बना के डाटा ट्रांसफर किया जा सकता है |
पर तब क्या होता है जब एक सिस्टम के द्वारा तेज़ी से डाटा सेंड किया जाता है, इस कनेक्शन में रिसीवर के द्वारा रिसीव किया गया डाटा एक मेमोरी में सेव कर लिया जाता है जिसे buffer कहा जाता है | पर buffer की भी एक सीमा होती है तो ओवरफ्लो होने पर आने वाले डाटा को रोक दिया जाता है |

Flow Control

फ्लो कण्ट्रोल का काम है, सेंडिंग होस्ट के द्वारा सेंड किया गया डाटा को रिसीविंग होस्ट पर आने तक कण्ट्रोल करना |
ये इस तरह से काम करता है, सेंडिंग होस्ट के द्वारा डाटा बार-बार भेजा जाता है और रिसीविंग होस्ट उसको जल्दी से जल्दी प्रोसेस नहीं कर पाता और डाटा ओवरफ्लो हो जाता है तब फ्लो कण्ट्रोल के द्वारा सेंडिंग होस्ट को एक सिग्नल भेजा जाता है जिसमे "not ready" इंडिकेटर होता है इसका मतलब सेंडिंग होस्ट को निर्देश दिया जाता है कि थोड़ी देर के लिए डाटा सेंडिंग को रोक दे जब तक पुराने डाटा का प्रोसेस पूरा नहीं हो जाता है |

Windowing

ideally data का आदान-प्रदान तेज़ी से और सही तरीके से होता है | और आप अंदाज़ा लगा सकते है कि कितना बुरा होगा जब हर सेगमेंट सेंड करने के बाद रिसीविंग होस्ट से acknowledgment ली जाये | सेगमेंट की मात्रा जो कि bytes में पहचान की जाती है | इन bytes को एक transmitting मशीन आसानी से ट्रांसमिट कर सकती है बिना किसी acknowledgment के, इसी को window कहा जाता है |

Acknowledgments

अच्छी डाटा डिलीवरी वही होती है जिसमे यह सुनिश्चित कर लिया जाता है कि पूरी तरह से काम कर रहे डाटा लिंक के द्वारा भेजा गया डाटा, जो कि एक मशीन से दूसरी मशीन को भेजा जाता है, बिना किसी रुकावट के पहुँच जाये | acknowledgment गारंटी देता है कि डाटा का लोस नहीं होगा और 2 बार नहीं भेजा जायगा | और ये सब positive acknowledgment with retransmission technique से हांसिल किया जाता है, इसमें रिसीविंग होस्ट के द्वारा डाटा रिसीव करने के बाद एक acknowledgment सेंडिंग होस्ट को भेज दिया जाता है कि डाटा प्राप्त कर लिया है |

The Network Layer

नेटवर्क लेयर devices की addressing को मेनेज करती है, एक नेटवर्क में डिवाइस की लोकेशन ट्रैक करती है और डाटा को एक से दूसरी जगह भेजने के लिए सबसे अच्छे रास्ते का पता लगाती है | routers भी इसी लेयर में आते है क्यों वे लेयर 3 डिवाइस है | और एक inter network के अन्दर राऊटर अपनी रूटिंग सर्विसेज प्रदान करता है | और आईये देखते है कि राऊटर ये कैसे करता है |
जब भी राऊटर की इंटरफ़ेस पर कोई पैकेट रिसीव होता है, उसमे डेस्टिनेशन ip address चेक किया जाता है, अगर पैकेट किसी पर्टिकुलर डेस्टिनेशन के लिए नहीं होता है तो रूटिंग टेबल में इसके लिए डेस्टिनेशन नेटवर्क address ढूंढा जायगा | एक बार राऊटर एग्जिट इंटरफ़ेस ढूंढ लेता है तो पैकेट को उसमे भेज दिया जाता है इसके बाद उस पैकेट को फ्रेम में बदल कर लोकल नेटवर्क पर भेज दिया जाता है | 

अगर राऊटर को रोउटिंग टेबल में पैकेट के लिए किसी भी प्रकार की डेस्टिनेशन नेटवर्क की एंट्री नहीं मिलती है तो राऊटर के द्वारा पैकेट ड्राप कर दिए जाते है | 2 तरह के पैकेट्स नेटवर्क लेयर में इस्तेमाल किये जाते है:- 1. डाटा 2. रूट अपडेट |

डाटा पैकेट - inter network के द्वारा यूजर को डाटा भेजा जाता है | जो प्रोटोकॉल्स डाटा ट्रैफिक को सपोर्ट करते है वो routed प्रोटोकॉल्स कहलाते है |

रूट अपडेट पैकेट्स - इस तरह के पैकेट का काम नेबर के routers को अपडेट करना है, जिनसे राऊटर कनेक्टेड है | जो प्रोटोकॉल रूटिंग अपडेट सेंड करते है वो रोउटिंग प्रोटोकॉल्स कहलाते है | RIP, RIPv2, EIGRP और OSPF ये सभी रोउटिंग प्रोटोकॉल्स है |

The Data Link Layer

the data link layer, डाटा को फिजिकल ट्रांसमिशन की सुविधा देता है और साथ ही साथ एरर नोटिफिकेशन, नेटवर्क टोपोलॉजी और फ्लो कण्ट्रोल को हैंडल करता है |

इसका मतलब डाटा लिंक लेयर, हार्डवेयर address का इस्तेमाल करके ये सुनिश्चित करता है कि मेसेज LAN के अंदर प्रॉपर डिवाइस तक पहुँच कि नहीं और ये messages को फिजिकल लेयर के लिए नेटवर्क लेयर से बिट्स में ट्रांसलेट भी करता है |

डाटा लिंक लेयर मेसेज का निर्माण करता है, जो कि डाटा फ्रेम कहलाता है और साथ में कस्टमाइज्ड header को ऐड करता है जिसमे डेस्टिनेशन और सोर्स हार्डवेयर की इनफार्मेशन होती है | एक बार ये मेसेज अपनी डेस्टिनेशन पर पहुँच जाये उसके बाद ये header इनफार्मेशन हटा दी जाती है |

ये जानन आपके लिए आवश्यक है कि राऊटर, नेटवर्क लेयर पर काम करते है वो किसी भी पर्टिकुलर होस्ट की परवाह नहीं करते कि वो कहाँ पर स्थित है |

IEEE Ethernet के डाटा लिंक लेयर की 2 और सब लेयर्स है :-

Media Access Control (MAC) -

ये लेयर यह बताती है कि पैकेट्स मीडिया से कैसे भेजे जायेंगे | यहाँ पर मीडिया का एक्सेस "पहले आओ पहले पाओ" के आधार पर किया जाता है क्योंकि सब एक ही bandwidth को शेयर कर रहे होते है | फिजिकल addressing इसी लेयर में में बताई गयी है और साथ ही साथ logical topologies भी इसी लेयर में बताई गई है |

Logical Link Control (LLC) - 

इसका काम नेटवर्क लेयर प्रोटोकॉल को की पहचान करना है और फिर उनको encapsulate करना है |एक बार फ्रेम रिसीव होने के बाद LLC header, डाटा लिंक लेयर को यह बताता है कि पैकेट के साथ क्या करना है |

ये इस तरह काम करता है :- जब होस्ट एक फ्रेम रिसीव करता है तो LLC header में देखता है कि यह पैकेट कहाँ जाना है | उदहारण के लिए नेटवर्क लेयर में IP Protocol, कण्ट्रोल बिट्स की sequencing करना और फ्लो कण्ट्रोल भी इसी का काम है |


The Physical Layer

फाईनली जब हम नीचे आते है तो हम पाते है कि फिजिकल लेयर 2 चीज़े करती है बिट्स को सेंड करना और रिसीव करना |

आप जानते ही होंगे की बिट्स की वैल्यू 1 या फिर 0 होती है | विभिन्न प्रकार की मीडिया से फिजिकल लेयर डायरेक्ट कम्युनिकेशन करती है | अलग अलग प्रकार की मीडिया इन बिट्स को अलग अलग तरह से इस्तेमाल करती है | हर तरह की मीडिया के लिए अलग अलग प्रोटोकॉल है जिनका इस्तेमाल करके बिट्स का पैटर्न प्रॉपर किया जाता है और डाटा, मीडिया में कैसे एनकोड होकर जायगा, उस मीडिया की क्वालिटी की जांच परताल भी इसी लेयर में आते है |

Hubs at the Physical Layer

हब एक मल्टीप्ल port रिपीटर की तरह होता है | रिपीटर का काम होता है सिग्नल रिसीव करना, उनको amplify करना और वापस से सभी पोर्ट्स पर भेज देना, बिना डाटा को देखे |
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